Kishor Prajapati: खेलों की दुनिया में जब कोई खिलाड़ी अंतर्राष्ट्रीय मंच पर पदक लेकर देश का नाम रोशन करता है, तब पूरा देश उसकी जय-जयकार करता है। अख़बारों की सुर्खियों में उसका नाम छपता है, पुरस्कार और सम्मान की बौछार होती है। लेकिन उस चमकते हुए पदक के पीछे खड़ा एक चेहरा ऐसा भी है, जिसे न तो अख़बार की सुर्खियाँ मिलती हैं, न ही समाज का सम्मान — और वह है कोच।
कोच की अनदेखी हकीकत
कोच वह व्यक्ति है, जो गली-गांव से बच्चों को चुनता है, उन्हें खेल की बुनियादी शिक्षा देता है, अनुशासन और समर्पण सिखाता है। वह वर्षों तक अपने व्यक्तिगत त्याग, मेहनत और सीमित साधनों के बावजूद खिलाड़ियों को तैयार करता है। लेकिन विडंबना यह है कि खेल व्यवस्था में सबसे ज्यादा शोषण और अपमान का शिकार भी वही कोच होता है।
जब खिलाड़ी सफल होता है, तो उसकी चमक के पीछे कोच का नाम दब जाता है।
अगर कोई कोच सिस्टम की गलतियों पर बोलने की हिम्मत करता है, तो उसके करियर पर ताला लग जाता है। पुरस्कार और पहचान की सूची में खिलाड़ी का नाम होता है, लेकिन कोच अक्सर गुमनाम रह जाता है।
एक मौन संघर्ष
कोच का संघर्ष सिर्फ मैदान तक सीमित नहीं है। उसे रोज़-रोज़ की उपेक्षा, असुरक्षा और हैरेसमेंट झेलना पड़ता है। फिर भी वह रुकता नहीं, क्योंकि उसके भीतर एक गुरु है, जो गुरु-परंपरा को निभाना चाहता है। यही कारण है कि तमाम कठिनाइयों के बाद भी कोच लगातार देश को बेहतरीन खिलाड़ी देता रहता है।
सरकार और समाज के लिए सवाल
1. क्या उस कोच की मेहनत केवल “धन्यवाद” तक सीमित रह जानी चाहिए? 2. क्या इस देश में खिलाड़ियों के साथ-साथ कोच के लिए भी एक मजबूत नीति और सुरक्षा तंत्र नहीं होना चाहिए? 3. जब कोच ही अपमानित और हाशिये पर धकेल दिया जाएगा, तो आने वाली पीढ़ी के खिलाड़ियों को कौन गढ़ेगा?
समाधान की दिशा
कोच के लिए आजीविका सुरक्षा और पेंशन प्रणाली सुनिश्चित हो। खिलाड़ियों की सफलता में कोच की भूमिका को आधिकारिक मान्यता मिले। राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर कोच अवार्ड और सम्मान प्रणाली को मजबूत किया जाए। खेल संस्थाओं और निर्णय-निर्माण समितियों में कोचों को प्रतिनिधित्व मिले। सच यह है कि कोच खेल जगत का अनकहा योद्धा है। खिलाड़ी रोशनी में चमकते हैं, लेकिन कोच अंधेरों में जलता हुआ दीपक है। अगर इस दीपक को बार-बार बुझाया जाएगा, तो भविष्य की खेल ज्योति भी मंद पड़ जाएगी। अब समय आ गया है कि सरकार, संस्थाएँ और समाज इस सच्चाई को स्वीकार करें और कोच को वह स्थान दें, जिसका वह असली हकदार है।
















